हमारी शासन-व्यवस्था मंत्रिमंडलीय शासन व्यवस्था हैं, जिसके तहत केन्द्र में प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद् तथा राज्यों में मुख्यमंत्री सहित मंत्रिपरिषद् की वास्तविक शासन-संचालन का काम करती हैं। राष्ट्रपति और राज्यपाल तो प्रतीकात्मक प्रमुख मात्र होते हैं।
मुख्यमंत्री पद के लिए योग्यता
मुख्यमंत्री पद के लिए संविधान में कोई विहित नहीं हे लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है कि वह राज्य विधानसभा का सदस्य हो। इस प्रकार मुख्यमंत्री में राज्य विधानसभा के सदस्य की योग्यता होनी चाहिए। राज्य विधानसभा का सदस्य न होने वाला व्यक्ति भी CM के पद पर नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है कि वह 6 माह के अंदर राज्य विधानसभा का सदस्य निर्वाचित हो जाये।
कर्त्तव्य तथा अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 163, 164, 167 में सपरिषद् मुख्यमंत्री तथा उसके कर्त्तव्यों का निर्धारण किया गया हैं। प्रावधान हैं कि विवेकानुसार कार्यों को छोड़कर राज्यपाल को परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करेगा। राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेगा तथा उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों को भी नियुक्त करेगा। मंत्रिपरिषद् राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
- वह राज्य विधानसभा का वास्तविक अध्यक्ष है और इस रूप में वह अपने मंत्रियों तथा संसदीय सचिवों के चयन, उनके विभागों के वितरण तथा पदमुक्ति और लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों तथा महाधिवक्ता एवं अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए राज्यपाल को परामर्श देता है।
- राज्य में असैनिक पदाधिकारियों के स्थानांतरण के आदेश CM के आदेश पर जारी किये जाते हैं तथा वह राज्य की नीति से संबंधित विषयों के संबंध में निर्णय करता है।
- वह राष्ट्रीय विकास परिषद में राज्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- CM मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करता है तथा सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त का पालन करता है। यदि मंत्रिपरिषद का कोई सदस्य मंत्रिपरिषद की नीतियों से भिन्न मत रखता है तो CM उससे त्यागपत्र देने के लिए कह सकता है या राज्यपाल से उसे बर्खास्त करने की सिफारिश कर सकता हैं।
- वह राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सलाह देता हैं।
मंत्रिपरिषद का गठन
मंत्रिपरिषद का गठन राज्यपाल द्वारा किया जाता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद में सामान्यतया उन्हीं व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो विधानसभा या राज्य विधान परिषद के सदस्य होते हैं। लेकिन विशेष परिस्थितियों में ऐसे व्यक्तियों को भी सम्मिलित किया जाता है जो विधानमंडल के सदस्य न हों। इस प्रकार नियुक्त किये गये मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विधानपरिषद या विधानसभा का सदस्य 6 माह के लिए भीतर बनना आवश्यक हैं। यदि 6 माह के भीतर वह व्यक्ति विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य नहीं बन जाता है, तो उसके पद ग्रहण करने की तिथि से 6 माह की समाप्ति पर स्वतः उसका मंत्री पद पर रहना समाप्त हो जायेगा।
मंत्रिपरिषद की पदावधि
मंत्रिपरिषद तब तक कार्यरत रहती है, जब तक CM पद पर बना रहता है। CM के पद त्याग देने या बर्खास्त होने से मंत्रिपरिषद का विघटन हो जाता है।
भूमिका एवं स्थिति
राज्य के शासन-संचालन का वास्तविक सूत्रधार सपरिषद् मुख्यमंत्री होता हैं। वह विभिन्न प्रशासनिक, विधायी तथा कार्यपालिका-कार्यों हेतु राज्यपाल को परामर्श देता हैं, जिसे सामान्यतः राज्यपाल मान लेता हें।
मुख्यमंत्री की स्थिति अग्रांकित कारणों से विशिष्ट होती हैं-
- संसदीय शासन व्यवस्था में निर्वाचित विधानमंडल ही शासन का केन्द्र होता हैं, राज्यपाल या राष्ट्रपति नहीं।
- CM में जनता की शक्ति निहित होती हैं, जबकि राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख मात्र होता हैं।
- CM की नियुक्ति हालांकि राज्यपाल करता हैं तथापि CM तथा मंत्रिपरिषद् अपने कृत्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
- राज्यपाल विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को CM नियुक्त करने को बाध्य हैं। यदि विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन को बहुमत नहीं हैं तो राज्यपाल स्वविवेक से CM की नियुक्ति करता हैं।
- यद्यपि राज्य के सारे कार्य राज्यपाल के नाम से किए जाते है तथापि राज्यपाल ये काम मंत्रिपरिषद् के परामर्श पर ही करता हैं।
- CM अपने व्यक्तित्व तथा अपार जनसमर्थन से भी काफी मजबूत स्थ्तिि प्राप्त कर लेता हैं, जैसे कि उत्तर प्रदेश में अभी माननीय आदित्यनाथ योगी ने प्राप्त कर लिया हैं।
मुख्यमंत्री की बर्खास्तगी
सामान्यतः CM अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त होता है और जैसे ही उसका विधानसभा में बहुमत समाप्त होता है उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए। यदि वह त्यागपत्र नहीं देता है तो राज्यपाल उसे बर्खास्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त CM निम्नलिखित परिस्थितियों में बर्खास्त किया जा सकता है –
- यदि राज्यपाल किसी CM को विधानसभा का अधिवेशन बुलाने तथा उसमें बहुमत सिद्ध करने की सलाह दे और यदि राज्यपाल द्वारा निर्धारित अवधि के भीतर CM विधानसभा का अधिवेशन बुलाने के लिए तैयार न हो, तो राज्यपाल CM को बर्खास्त कर सकता है।
- यदि राज्यपाल अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट दे कि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो राष्ट्रपति CM को बर्खास्त करके राज्य का शासन चलाने का निर्देश राज्यपाल को दे सकता है।
- जब CM के विरूद्ध राज्य विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाये और CM त्यागपत्र देने से इंकार कर दे, तब राज्यपाल CM को बर्खास्त कर सकता है।
इसके बावजूद मुख्यमंत्री की स्थिति को कई कारण प्रभावित करते है –
- CM की स्थिति को राज्यपाल तथा अनुच्छेद 356 के प्रावधान सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। अगर केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार हो तो केन्द्र सरकार बहुधा अपने निहित स्वार्थ के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देती हैं। इस प्रावधान का काफी दुरूपयोग हुआ, खासकर कांग्रेस पार्टी की सरकार ने इसका जमकर प्रयोग किया हैं यथा दिसंबर 1992 में भाजपा की चार राज्यों (उ0प्र0, हि0प्र0, म0प्र0 तथा राजस्थान) की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया था। स्पष्ट हैं कि CM पर केन्द्र सरकार का दबाव रहता हैं।
- CM की स्थिति को उसका अपना राजनीतिक दल भी प्रभावित करता हैं। CM के चयन, पुनः अन्य मंत्रियों की नियुक्ति तथा राजनीतिक एजेंडे को लागू करने में उसके अपने राजनीतिक दल की प्रमुख भूमिका होती हैं। कांग्रस ने तो कांग्रेस शासित राज्यों में CM के कार्यकलापों में खुलकर हस्तक्षेप किया हैं।
- गठबंधन सरकार की स्थिति में CM को सहयोगी दलों की भी सुननी पड़ती हैं।
उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद मुख्यमंत्री का अपना व्यक्तित्व तथा चरित्र. ही उसकी वास्तविक स्थिति को तय करता हैं। इस मामले में अभी उत्तर प्रदेश का उल्लेख करना समीचीन होगा, जहाँ माननीय आदित्यनाथ योगी ने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व से मुख्यमंत्री की स्थिति को इतना मजबूत कर दिया कि राज्य में राज्यपाल, अन्य मंत्री तथा पदाधिकारी की हैसियत नगण्य हो गई हैं। माननीय आदित्यनाथ योगी ने अपने कार्य तथा व्यक्तित्व के बूते ही पूरे देश में उत्तरप्रदेश तथा उत्तरप्रदेशवासियों का गौरव लौटाया हैं तथा राज्य की विकास गति को तेज किया हैं। यही कारण है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में जनता ने उनपर अपना अभूतपूर्व विश्वास दिखाया तथा भाजपा पार्टी को अपार बहुमत से विधानसभा में भेजा।